रविवार, 1 अप्रैल 2012

क्या यही जिंदगी है............

                       

ना भोजन को समय है
ना सोने को समय है,  
ना कोई सोच ना कोई उद्देश्य ,
बस भागते रहना ,
क्या यही जिन्दगी है ...........

कल ये करना है ,

कल वो करना है ,
कल क्या क्या करना है
बस सोचते रहना
कल - कल के चक्कर में ,,
आज  का रोना ,
क्या यही जिंदगी है .............

कभी अमिताभ बन जाता ,

कभी तेंदुलकर जैसा ,
कभी टाटा कभी बिडला ,
कभी सब भूलकर पैसा
कमाने की ललक में
बस सोचते रहना ,
क्या यही जिन्दगी है ..........
                                            लेखक - अमित प्रकाश तिवारी (नादान)

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