बहुत याद आती है ...........
बहुत याद आती है, बचपन की बाते ,
वो मम्मी का गुस्सा, वो पापा की बाते ,
गुरु जी दहशत, थे हरदम सताते ,
बहुत याद आती है..........
कभी दौड़ कर भाग जाना कही
कभी प्यार से यूँ सताना कभी
कभी प्यार से यूँ सताना कभी
चोट देना किसी को हँसाना कभी
मस्त खेलो में रहना न पढ़ना कभी
थी डराती सदा हमको वो काली राते
बहुत याद आती है..........
वो पड़ोसी के बच्चो से लड़ना झगड़ना ,
प्यार से फ़िर सदा उनके ही संग में रहना
वो दादा जी के संग में धीरे धीरे चलना
करना सबकी नक़ल पीठ पीछे चिढाना
वो बिस्कुट मिठाई जो चुप चुप के खाते
बहुत याद आती है..........
लेखक- अमित प्रकाश तिवारी (नादान)
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